गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु पूर्णिमा भारत में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो गुरु-शिष्य परंपरा का सम्मान और आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। "गुरु" शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ है "अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला"। इस दिन, शिष्य अपने गुरु के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, जो उन्हें शिक्षा, मार्गदर्शन और ज्ञान प्रदान करते हैं।
गुरु पूर्णिमा का महत्व अध्यात्मिक, शैक्षणिक और सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह दिन विशेष रूप से उन गुरुओं के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने अपने शिष्यों को सही मार्ग दिखाया है और जीवन में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्य स्थापित किए हैं।
गुरु पूर्णिमा का इतिहास और उत्पत्ति
गुरु पूर्णिमा का प्रारंभिक उल्लेख महाभारत और पुराणों में मिलता है। यह पर्व वेद व्यास के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने महाभारत, वेदों और पुराणों का संकलन और रचना की थी। इसलिए, इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान बुद्ध ने सारनाथ में अपने पहले पांच शिष्यों को उपदेश दिया था, जो बौद्ध धर्म में एक महत्वपूर्ण घटना है।
इसके अलावा, जैन धर्म में भी इस दिन को विशेष महत्व दिया जाता है, क्योंकि इसे भगवान महावीर के पहले गुरु, गौतम गणधर, को समर्पित किया जाता है।
गुरु पूर्णिमा 2025 में कब है? Guru Purnima 2025 Date : गुरु पूर्णिमा व्रत 10 जुलाई को है क्या ? जानें सही तारीख
गुरु पूर्णिमा का पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। 2025 में, गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई को मनाई जाएगी। इस दिन, शिष्य अपने गुरु के चरणों में बैठकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और उन्हें उपहार स्वरूप पुष्प, फल और वस्त्र अर्पित करते हैं। शास्त्रों विहित नियम के अनुसार, पूर्णिमा का व्रत चंद्रोदय व्यापिनी पूर्णिमा तिथि को ही पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है। इसमें भी जिस दिन रात के समय पूर्णिमा तिथि रहती है उसी दौरान व्रत और पूजन किया जाता है। इसलिए 10 जुलाई को पूर्णिमा का व्रत किया जाएगा ।
गुरु पूर्णिमा का उत्सव और परंपराएँ
गुरु पूर्णिमा के दिन लोग विभिन्न प्रकार के धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इस दिन की परंपराओं में शामिल हैं:
- पूजा और आराधना: शिष्य अपने गुरु की विशेष पूजा करते हैं और उनके प्रति आभार प्रकट करते हैं।
- आशीर्वाद प्राप्ति: शिष्य गुरु के चरणों में बैठकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
- सत्संग और प्रवचन: इस दिन कई स्थानों पर सत्संग और प्रवचनों का आयोजन किया जाता है, जहाँ गुरु अपने शिष्यों को ज्ञान प्रदान करते हैं।
- दान और सेवा: इस दिन दान और सेवा का विशेष महत्व होता है। लोग जरूरतमंदों को दान करते हैं और समाज सेवा के कार्यों में भाग लेते हैं।
निष्कर्ष
गुरु पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है जो गुरु-शिष्य परंपरा की महत्ता को रेखांकित करता है। यह दिन न केवल गुरुओं के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने का दिन है, बल्कि यह आत्म-उन्नति और ज्ञान की प्राप्ति के लिए भी प्रेरित करता है। 2025 में 10 जुलाई को मनाई जाने वाली गुरु पूर्णिमा हमें अपने गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करने और उनके दिए ज्ञान का अनुसरण करने की प्रेरणा देती है।
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